Saturday, October 31, 2009

कुछ मेरी कविताएं

पागल


आजकल लोगों ने मुझे पागल नाम दिया है,
इसलिये नहीं कि
मैं गली के मरियल कुत्तों से
लड़कर बटोर लाता हूं
अधजली रोटी के टुकड़े,
इसलिए भी नहीं
कि मैं चिल्लाता हुआ
दौड़ता हूं शहर की सड़कों पर
और पड़ती है पत्थरों की चोट
मेरी नंगी पीठ पर ।

आजकल लोगों ने मुझे पागल नाम दिया है,
इसलिये नहीं
कि मैं बोल जाता हूं
सबकुछ साफगोई से,
जो कुछ भी दिखता है सामने
और मोल लेता हूं आफत अपनी ही करतूत से ।


ऐसा भी नहीं कि ओढ़कर
‘जमीर’ और ‘ईमानदारी’ जैसे शब्द
बिगाड़ लेता हूं हर जगह
खुद ही, अपना बनता सा काम ।

ऐसा तो कतई नहीं
कि निज भाषा के अति मोह में
बन जाता हूं मैं
हंसी का पात्र,
अक्सर मित्रों की महफिल में ।

फिर भी न जाने क्यों ????
आजकल लोगों ने मुझे पागल नाम दिया है,
शायद इसलिए कि आजकल
मेरी बातें उन्हें
‘कविता’ सी लगने लगी हैं ।

•कुल प्रसाद उपाध्या य

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