Friday, October 30, 2009

क्‍या करुं ?

क्‍यों न हम लें मान, हम हैं चल रहे ऐसी डगर पर,
हर पथिक जिस पर अकेला, दुख नहीं बंटते परस्‍पर,
दूसरों की वेदना में वेदना जो है दिखाता,
वेदना से मुक्ति का निज हर्ष केवल वह छिपाता,
तुम दुखी हो तो सुखी मैं विश्‍व का अभिशाप भारी
क्‍या करुं संवेदना लेकर तुम्‍हारी ??
क्‍या करुं ????
- हरिवंश राय 'बच्‍चन'

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