Thursday, July 22, 2010

एक कविता मेरे प्‍यारे विद्यार्थियों के लिए जिन्‍हें यह बेहद पसंद थी

हय–रूण्ड गिरे¸ गज–मुण्ड गिरे¸


कट–कट अवनी पर शुण्ड गिरे।

लड़ते–लड़ते अरि झुण्ड गिरे¸

भू पर हय विकल बितुण्ड गिरे । 
 
हिंदी के प्रसिद्ध कवि श्‍याम नारायण पांडे की यह कविता मेरे उन प्‍यारे विद्यार्थियों के लिए है जिनके अनुरोध पर मैं अक्‍सर इसकी कुछ पंक्तियां कक्षा में उन्‍हें सुनाया करता था ।

पूरी कविता के लिए यहां click करें