Saturday, October 31, 2009

कुछ मेरी कविताएं

आदिम मनुष्य

फिर एक धमाका
पांच मरे, पंद्रह घायल ।
बस एक खबर है यह
आम खबरों की तरह ।
अब नहीं होता कोलाहल
सुनकर शरीर में,
खौलता नहीं है खून
खूनी तांडव देखकर,
कितना संवेदना शून्य हो गया है
आज का मनुष्या,
शायद यही है -
आधुनिक सभ्यता की पहचान ।
अगर यही सही है,
तो,
हे प्रभु !
ले चलो हमें
उसी पुरातनता में,
जहां हम
'आदिम' ही सही
मनुष्य तो थे ।
*** कुल प्रसाद उपाध्यांय

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