Saturday, October 31, 2009

कुछ मेरी कविताएं

पागल


आजकल लोगों ने मुझे पागल नाम दिया है,
इसलिये नहीं कि
मैं गली के मरियल कुत्तों से
लड़कर बटोर लाता हूं
अधजली रोटी के टुकड़े,
इसलिए भी नहीं
कि मैं चिल्लाता हुआ
दौड़ता हूं शहर की सड़कों पर
और पड़ती है पत्थरों की चोट
मेरी नंगी पीठ पर ।

आजकल लोगों ने मुझे पागल नाम दिया है,
इसलिये नहीं
कि मैं बोल जाता हूं
सबकुछ साफगोई से,
जो कुछ भी दिखता है सामने
और मोल लेता हूं आफत अपनी ही करतूत से ।


ऐसा भी नहीं कि ओढ़कर
‘जमीर’ और ‘ईमानदारी’ जैसे शब्द
बिगाड़ लेता हूं हर जगह
खुद ही, अपना बनता सा काम ।

ऐसा तो कतई नहीं
कि निज भाषा के अति मोह में
बन जाता हूं मैं
हंसी का पात्र,
अक्सर मित्रों की महफिल में ।

फिर भी न जाने क्यों ????
आजकल लोगों ने मुझे पागल नाम दिया है,
शायद इसलिए कि आजकल
मेरी बातें उन्हें
‘कविता’ सी लगने लगी हैं ।

•कुल प्रसाद उपाध्या य

कुछ मेरी कविताएं

आदिम मनुष्य

फिर एक धमाका
पांच मरे, पंद्रह घायल ।
बस एक खबर है यह
आम खबरों की तरह ।
अब नहीं होता कोलाहल
सुनकर शरीर में,
खौलता नहीं है खून
खूनी तांडव देखकर,
कितना संवेदना शून्य हो गया है
आज का मनुष्या,
शायद यही है -
आधुनिक सभ्यता की पहचान ।
अगर यही सही है,
तो,
हे प्रभु !
ले चलो हमें
उसी पुरातनता में,
जहां हम
'आदिम' ही सही
मनुष्य तो थे ।
*** कुल प्रसाद उपाध्यांय

Friday, October 30, 2009

क्‍या करुं ?

क्‍यों न हम लें मान, हम हैं चल रहे ऐसी डगर पर,
हर पथिक जिस पर अकेला, दुख नहीं बंटते परस्‍पर,
दूसरों की वेदना में वेदना जो है दिखाता,
वेदना से मुक्ति का निज हर्ष केवल वह छिपाता,
तुम दुखी हो तो सुखी मैं विश्‍व का अभिशाप भारी
क्‍या करुं संवेदना लेकर तुम्‍हारी ??
क्‍या करुं ????
- हरिवंश राय 'बच्‍चन'

आदमी (एक प्रसिद्ध कवि की बेहद खूबसूरत पंक्तियां)

आदमी मरने के बाद
कुछ नहीं सोचता,
आदमी मरने के बाद
कुछ नहीं बोलता,
जब आदमी कुछ नहीं सोचता
और कुछ नहीं बोलता
तब वह मर जाता है ।