Wednesday, November 18, 2009

एक कविता

आदिम मनुष्य

फिर एक धमाका
पांच मरे, पंद्रह घायल ।
बस एक खबर है यह
आम खबरों की तरह ।
अब नहीं होता कोलाहल
सुनकर शरीर में,
खौलता नहीं है खून
खूनी तांडव देखकर ।
कितना संवेदना शून्य हो गया है
आज का मनुष्य,
शायद यही है -
आधुनिक सभ्यता की पहचान ।
अगर यही सही है,
तो,
हे प्रभु !
ले चलो हमें
उसी पुरातनता में,
जहां हम
'आदिम' ही सही
मनुष्य तो थे ।
*** कुल प्र0 उपाध्‍याय

1 comment:

  1. भाई कुलप्रसाद तुम्हारा ब्लॉग अच्छा लगा प्रवीण परीक्षार्थियों के लिए काफी सामग्री उपलब्ध है , आगे भी इसमे नया कुछ ज़रूर जोड़ते चलो । हाँ, ब्लॉग का शिरोनाम सु-स्वागतम न होकर केवल स्वागतम हो तो व्याकरण की दृष्टि से उचित होगा क्योंकि सु+आगत से स्वागत शब्द बनता है फिर भला सु+सु+आगत का क्या मतलब? तुम्हारा मित्र विश्वजित दुर्गापुर

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